Isaiah 33

संकट और सहायता

1हाय! तुम पर,
जिनको नाश नहीं किया गया!
और हाय! तुम विश्‍वासघातियों पर,
जिनके साथ विश्वासघात नहीं किया गया!
जब तुम नाश करोगे,
तब तुम नाश किए जाओगे;
और जब तुम विश्वासघात कर लोगे,
तब तुम्हारे साथ विश्वासघात किया जायेगा.

2हे याहवेह, हम पर दया कीजिए;
हम आप ही की ओर देखते हैं.
प्रति भोर आप हमारा बल
तथा विपत्ति में हमारा सहायक बनिये.
3शोर सुनते ही लोग भागने लगते हैं;
जब आप उठते तब, लोग बिखरने लगते हैं.
4जैसे टिड्डियां खेत को नष्ट करती हैं;
उसी प्रकार लूटकर लाई गई चीज़ों को नष्ट कर दिया गया है, मनुष्य उस पर लपकते हैं.

5याहवेह महान हैं, वह ऊंचे पर रहते हैं;
उन्होंने ज़ियोन को न्याय तथा धर्म से भर दिया है.
6याहवेह तुम्हारे समय के लिए निश्चित आधार होगा! उद्धार, बुद्धि और ज्ञान तुम्हारा हक होगा;
और याहवेह का भय उसका धन होगा.

7देख, उनके सैनिक गलियों में रो रहे हैं;
शांति के राजदूत फूट-फूटकर रो रहे हैं.
8मार्ग सुनसान पड़े हैं,
और सब वायदों को तोड़ दिया गया है.
उसे नगरों
नगरों कुछ हस्तलेखों में गवाहों
से घृणा हो चुकी है,
मनुष्य के प्रति उसमें कोई सम्मान नहीं है.
9देश रो रहा है, और परेशान है,
लबानोन लज्जित होकर मुरझा रहा है;
शारोन मरुभूमि के मैदान के समान हो गया है,
बाशान तथा कर्मेल की हरियाली खत्म हो चुकी हैं.

10याहवेह ने कहा, “अब मैं उठूंगा,
अब मैं अपना प्रताप दिखाऊंगा;
और महान बनाऊंगा.
11तुम्हें सूखी घास का गर्भ रहेगा,
और भूसी उत्पन्‍न होगी;
तुम्हारी श्वास ही तुम्हें भस्म कर देगी.
12जो लोग भस्म होंगे वे चुने के समान हो जाएंगे;
उन कंटीली झाड़ियों को आग में भस्म कर दिया जायेगा.”

13हे दूर-दूर के लोगों, सुनो कि मैंने क्या-क्या किया है;
और तुम, जो पास हो, मेरे सामर्थ्य को देखो!
14ज़ियोन के पापी डर गये;
श्रद्धाहीन कांपने लगे:
“हममें से कौन इस आग में जीवित रहेगा?
जो कभी नहीं बुझेगी.”
15वही जो धर्म से चलता है
तथा सीधी बातें बोलता,
जो गलत काम से नफरत करता है
जो घूस नहीं लेता,
जो खून की बात सुनना नहीं चाहता
और बुराई देखना नहीं चाहता—
16वही ऊंचे स्थान में रहेगा,
व चट्टानों में शरण पायेगा.
उसे रोटी,
और पानी की कमी नहीं होगी.

17तुम स्वयं अपनी ही आंखों से राजा को देखोगे
और लंबे चौड़े देश पर ध्यान दोगे.
18तुम्हारा हृदय भय के दिनों को याद करेगा:
“हिसाब लेनेवाला और
कर तौलकर लेनेवाला कहां रहा?
गुम्मटों का लेखा लेनेवाला कहां रहा?”
19उन निर्दयी लोगों को तू दोबारा न देखेगा,
जिनकी भाषा कठिन है और जो हकलाते हैं,
तथा उनकी बातें किसी को समझ नहीं आती.

20ज़ियोन के नगर पर ध्यान दो, जो उत्सवों का नगर है;
येरूशलेम को तुम एक शांत ज़ियोन के रूप में देखोगे,
एक ऐसे शिविर, जिसे लपेटा नहीं जाएगा;
जिसके खूंटों को उखाड़ा न जाएगा,
न ही जिसकी रस्सियों को काटा जाएगा.
21किंतु वही याहवेह जो पराक्रमी परमेश्वर हैं हमारे पक्ष में है.
वह बड़ी-बड़ी नदियों एवं नहरों का स्थान है.
उन पर वह नाव नहीं जा सकती जिसमें पतवार लगते हैं,
इस पर बड़े जहाज़ नहीं जा सकते.
22क्योंकि याहवेह हमारे न्यायी हैं,
याहवेह हमारे हाकिम,
याहवेह हमारे राजा हैं;
वही हमें उद्धार देंगे.

23तुम्हारी रस्सियां ढीली पड़ी हुई हैं:
वे जहाज़ को स्थिर न रख सकतीं,
न पाल को तान सके.
तब लूटी हुई चीज़ों को बांटकर
विकलांग ले जाएंगे.
24कोई भी व्यक्ति यह नहीं कहेगा, “मैं बीमार हूं”;
वहां के लोगों के अधर्म को क्षमा कर दिया जायेगा.
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